पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की अमर प्रेम कहानी
वो प्रेम ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो, वो प्रेम ही क्या जिसकी दास्ताँ युगो युगो तक चर्चा न होये , ऐसी ही एक और अमर प्रेम कहानी के सफर में हम आपको आज ले चलते है , ये प्रेम कहानी है पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की।
पृथ्वीराज और संयोगिता की पहली मुलाक़ात-
संयोगिता ,कनौज के राजा जयचंद की बेटी थी, उनकी सुंदरता के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे, एक बार उनका चित्र बनाने के लिए एक चित्रकार पन्नाराय महल आया , उस चित्रकार के पास अन्य चित्रों में जब उन्होंने पृथ्वीराज चौहान का चित्र देखा तो उस चित्र को देखते ही राजकुमारी संयोगिता पृथ्वीराज को दिल दे बैठी। यही हाल पृथ्वीराज का भी हुआ जब चित्रकार पन्नाराय ने संयोगिता का चित्र दिखया तो वो भी संयोगिता की ख़ूबसूरती पर दिल हार बैठे।
जयचंद और पृथ्वीराज
जयचंद और पृथ्वीराज के मध्य शुरू से ही कुछ अच्छे सम्बन्ध नहीं रहे थे , पृथ्वी राज अजमेर के राजा सोमेश्वर के बेटे थे और उनकी माँ दिल्ली के राजा अनंतपाल की बेटी कमला थी। कमला की बहन और सोमेश्वर की दूसरी बेटी की शादी कनौज के राजा विजयपाल से हुई जो जयचंद के पिता थे। माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान की वीरता ,वैभवता के कारण उनकी प्रसद्धि से जयचंद पृथ्वीराज से ईर्ष्या करते थे। जब जयचन्द को संयोगिता और पृथ्वीराज के प्रेम के बारे में पता चला तो उन्होंने राजसुज्ञ यज्ञ और संयोगिता का स्वंवर की घोषणा की, इस यज्ञ और स्वंवर का निमंत्रण आस पास के राजाओ के पास भी गया और पृथ्वीराज के पास भी या निमंत्रण पंहुचा परन्तु उनके सामंतो को यह बात ठीक नहीं लगी तो पृथ्वीराज ने जयचंद का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया , सामंतो का मानना था की जयचंद पृथ्वीराज और संयोगिता के प्रेम को जानते हुए स्वंवर कैसे कर सकते है , पृथ्वीराज को वहां बुलाकर अपमान का इरादा साफ़ दिखलाई देता था।
पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह
पृथ्वीराज का निमंत्रण को अस्वीकार करने से जयचंद का गुस्सा आ गया उसने अपने कारीगरों से पृथ्वीराज की एक प्रतिमा बना कर राजयज्ञ के बाहर द्वारपाल की जगह स्थापित करने का आदेश दिया। संयोगिता भी अपने पिता से नाराज़ थी , उनके कहने पर भी स्वंवर में अन्य राजाओं को देखने के लिए तैयार नहीं हुई बल्कि जब उसे पता चला की उसके पिता ने पृथ्वीराज की प्रतिमा द्वारपाल के रूप में बाहर लगवाई है तो संयोगिता वरमाला ले कर पृथ्वीराज की प्रतिमा के पास जा कर जैसे ही उस प्रतिमा पर वरमाला डालने वाली थी उसी समय पृथ्वीराज चौहान संयोगिता के पास घुड़सवार है कर आये और संयोगिता को अपने साथ घोड़े पर बैठा कर सबके सामने अगवा ले गए।
तो इस तरह पृथ्वीराज और संयोगिता का प्रेम विवाह हुआ , राजा जयचंद ने अपने इस अपमान का बदला बाद में मुहमद गौरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज से लिया परन्तु उस में भी वो और मुहमद गौरी असफल ही रहे।
प्यार की इस कहानी पर ही ये बात कही गयी कि प्यार और जंग में सब जायज है।